Thursday 16 July 2015

अल्फ्रेड गांधी !

(कांग्रेस और राहुल कन्फ्यूज- बीजेपी टोटली फ्यूज!).....

अखियों के झरोखों से मैंने देखा जो सांवरे,
तुम दूर नजर आये.. बड़ी दूर नजर आयें ..... मैं आ रहा हूं। अल्फ्रेड द किंग बनकर लौट रहा हूं। मैं अल्फ्रेड गांधी ! उर्फ राहुल गांधी.... जीत का इतिहास लिखने के लिए ग़ायब होना ज़रूरी था । बाबा अज्ञातवास में पक्के राजनीतिक ज्ञान ले रहे थे..जोक्स कई है राजनीति के बाजार मे..आखिर गुरु कौन..थाईलैंड पिछले दो साल से राजनैतिक उठा पटक से खुद ही गुजर रहा है तो वहां कौन गुरु मिला..बाबा की रैली जहां जहां हुई वहीं का हाल तो सबको पता है..फिर भी रामलीला में जो पैंतरा दिखाया बाबा ने , मोदी जी भी रियेक्ट कर गये..अगर यही रवैया रहा तो क्या बाकी कांग्रेसी भी बैंकाक जाने की तैयारी करते नजर आएंगे..फिर क्या होगा..क्या सिखेंगे..आप खुद चाल देखकर तय करें..फिलहाल बाबा फ्रेश नजर आएं.अच्छा लगा..अब असर गुऱु ज्ञान का है किसी और का..इंतजार करें...या क्या ज्ञान लेकर आएंगे..फिलहाल बाबा वैसे तो जीतकर भी लोग ग़ायब हो जाते हैं पर मैं तो सत्ता के लिए गायब था। ये बात और है कि ग़ायब होना भी सत्य है सत्ता का। अब तक मैं यूपीए के चश्में से राजनीति को देख रहा था। पर अब तक 59’ के परिणाम से कुछ नया लेकर लौट रहा हूं.. जहां बुद्ध का एकांतवास, पहाड़ों का ज्ञान और सियासत का एहतिराम तक भी शामिल है। अब देखते है आगे क्या होता है, इतनी कश्मकश के बाद तो कोई ये ना कहे .... PAPPU CAN’T DANCE SALA। अब ये तो वक्त ही इस बात की तस्दीक होगी कि कौन अल्फ्रेड बनकर लौटता है ...राहुल बाबा और कांग्रेस पार्टी जनता के लिए या फिर जनता और पार्टी राहुल बाबा के लिए अल्फ्रेड बनकर लौटते हैं, इस बार तो सबने देखा अब अगली बार देखते है...

Tuesday 17 September 2013

यादें……जो दिल को गुदगुदाती है तो कभी रुलाती है

कभी तुम नजर आए नहीं .....
निगाहे ढूंढती रही हर गली हर मोहल्ला ,,
कभी तुम चेहरा दिखाए नहीं ......
सूने दिल की गलियों में बिछाने को उजाला।
यू तो सहन मेरा भी धूप से भरा था ...
पर कहीं गुलमोहर तो कहीं कचनार से उलझा पड़ा था।
कोई सफ़र आगाज करता, कि ...
वहां से नाता तोड़ गया।
खुद अपने ही गलियों को छोड़ गया।
बंदिशे तो थी , अजनबी शहर में .....
मेरी तन्हाई पर वो मुस्कुराते रहे .......
मै बहुत दूर तक यूं ही चलता रहा ,,
वो बहुत दूर तक याद आते रहे।

Monday 16 September 2013

सियासत की बातें

बिहार.. . यहां सियासत की गलियों में जहां एक ओर सुशासन बाबू की कमियां नीत नए दिन सामने आ रही है तो वहीं दूसरी ओर नमो ने एक अलग ही हलचल पैदा कर रखी है।
बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले - शायद प्रदेश बीजेपी ने यही महसूस किया होगा .. .जब 17 साल पुराना गठबंधन टूटा होगा। पर इससे अलग पार्टी को प्रदेश में फिर से नमो नाम का एक ऐसा चिराग हाथ लगा ... जिसके सहारे वो प्रदेश में पार्टी की विजयी पताखा फहराने को बेताब हैं। सैलानियों और बौद्ध भिक्षुओं का यह प्रदेश ........ इन दिनों रैलियों और बयानबाजी का केंद्र सा बन गया है।
पर सवाल ये कि आगामी लोकसभा चुनाव में नमो प्रदेश में कौन सा कार्ड वोट बैंक के लिए इस्तेमाल करेंगे.……. क्योंकि उनकी टोपी से दूरी जगजाहिर है क्या ऐसे में वो हिन्दू ह्रदय सम्राट की छवि में परिवर्तन करना चाहेंगे या फिर अपने ही पुराने सहयोगी जदयू के अति पिछड़ा वोट बैंक में सेंधमारी ………क्योंकि जहाँ परम्परागत वोट बैंक उनके साथ है.… वहीं प्रदेश में बाढ़, सूखा, बिजली जैसी समस्याओं के साथ-साथ खुद के मंत्रियों द्वारा सरकार के खिलाफ बयानबाजी। ……. नीतीश सरकार की परेशानी का सबब और नरेन्द्र मोदी के पक्ष में लहर जरुर पैदा करती है ऐसे में उन्हें बल मिलना स्वभाविक है, पर यह कहना कि नमो के पक्ष में पूरी तरह लहर है कृत्रिम हैरानी की बात होगी क्योंकि यहां वोट बैंक का गणित कुछ और ही कहानी बयान करते है।
ऐसे में नमो कौन सा रुख अख्तियार करेंगे और सियासी नौका को सत्ता के उस पार तक कैसे ले जाएगे ……यह देखना दिलचस्प होगा। क्योंकि नेता का चुनाव आवाम के हाथों में है… और …वक्त इस बात की तस्दीक होगी कि जनता नमो का नमन करती है या फिर नमो स्वाहा ………